गुरुवार, 4 सितंबर 2008

....और सारी लिट्टियाँ जल गईं

मुझे आज भी याद है,तब मैं महज ६ साल का रहा होऊंगा,जब पहली बार मैंने चाय बनाई थी,बहुत खुश था,बिल्कुल ही नया अनुभव जो था।मुझे ठीक से याद नही चाय कैसी बनी थी,पर इतना जरुर याद है कि घर के सभी लोगों ने जमकर तारीफ़ की थी।सम्भव है कि चाय वास्तव में अच्छी बनी थी या फ़िर मेरा उत्साह बढ़ने के लिए ही वो सब था।जो भी हो,एक बात तो तय हो गई कि अगले दिन से जब भी मम्मी रसोईघर में होतीं मैं उनके पास रहने लगा था।मम्मी अक्सर मुझे दुलारते हुए किचन से जाने को कहती लेकिन मैं वहीँ चिपका रहता,और चाय बनाने के मौके तलाशता रहता।
उस दिन के बाद ऐसा बिल्कुल भी नहीं हुआ कि मैं हर रोज चाय बनाता ही था,कभी कभार महीने दो महीने में मौका मिल जाता,या फ़िर जब घर में कोई नही होता,मैं शुरू हो जाता।कुछ बड़ा हुआ तो दीदी की सहायता से चोरी से आलू की भुजिया सब्जी और पराठे बना लिए थे,तब मैं ७ साल का था।हालाँकि बाद में मम्मी को हमारी करतूत की जानकारी हो गई क्योंकि बर्तन धुलना ही भूल गए थे।मम्मी बहुत परेशान थीं कि छोटा बच्चा कहीं ख़ुद को जला न बैठे.उन्होंने मुझे बड़े प्यार से समझाया कि जब भूख लगी थी तो बताना था न,उन्हें क्या पता था कि भूख पेट में नहीं बल्कि कहीं और ही लगी थी।
मेरे घर पर बने पकवानों की एक खासियत होती थी कि ज्यादातर पकवान पारंपरिक ही होते थे.यही वजह थी कि बचपन से ही पारंपरिक व्यंजनों से लगाव बढ़ता रहा.ऐसा ही एक पारंपरिक भोजन था,लिट्टी-चोखा(बाटी-चोखा).इसके साथ खासियत यह होती थी कि इसको बनाने में पूरा परिवार शरीक रहता था.जब भी लिट्टी चोखा बनना होता मैं बड़े चाव से कंडे तोड़ता,तागाद में कंडों को सुलगाता,दीदी और मम्मी मिलकर घाठी तैयार करतीं और आंटा गुंथती.सारा अरेंजमेंट होने के बाद पूरा परिवार एकसाथ बैठ जाता और पापाजी लिट्टी सेंकते.पापाजी को लिट्टी पकाने में महारत हासिल थी.लिट्टी सेंकते वक्त उनके हाँथ बहुत तेजी से चलते,मैं उनके हाँथ चलाने के तरीके को सीखने की हमेशा कोशिश करता रहता था,इसी चक्कर में २,३ दफे हाँथ भी जला बैठा,पर शौक नहीं थमा।
तीसरी क्लास में ही लिट्टी चोखे में इतना कान्फिदेंट हो गया था कि बगल में रहने वाले अंकल आंटी को लिट्टी चोखे का प्रशिक्षण देने लगा,हलाँकि मेरे प्रशिक्षण के कारण उनकी सारी लिट्टियाँ जल के राख बन गई और उस दिन उन्हें होटल में जाकर पेट भरना पड़ा,पर मेरा कांफिडेंस कम नहीं हुआ....
क्रमशः...
आलोक सिंह "साहिल"

5 टिप्‍पणियां:

राजीव तनेजा ने कहा…

लगे रहो...जमे रहो...हमारी दुआ है कि आप पाक कला में निपुण हों

Unknown ने कहा…

अरे वाह! तो आप बावर्ची भी हैं,हमें तो पता ही नहीं था.चलिए सही है.
पर आपके कारन अंकल आंटी को होटल में खाना पड़ा,ये तो ज्यादती है भाई.

रंजू भाटिया ने कहा…

हमें भी खिलाना जी यह लिट्टी चोखा ..:) मधुर यादे कभी नही भूलती है

Shuaib ने कहा…

ऐसे ही मज़ेदार पकवान खिलाती रहो, शुभकामनाएं आपको।

http://shuaib.in/chittha

निर्मला कपिला ने कहा…

dhanyvaad aap aise hi pakaati rahe aur ha khaate rahen